बलौदाबाजार,
फागुलाल रात्रे, लवन।
फागुलाल रात्रे, लवन।
ग्राम पंचायत अहिल्दा में संस्कार सामाजिक संगठन एवं ग्रामवासियों के संयुक्त तत्वधान में श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह का आयोजन 30 अप्रैल से प्रारंभ हो रहा हो गया है। कथा वाचक पंडित गौरव जोशी नगोई बिलासपुर ने पहले दिन भागवत कथा के बारे में विस्तार से समझाया। दूसरे दिन पंडित जोशी ने परीक्षित की जन्म कथा सुनाई। उन्होने कहा कि जब राजा परीक्षित माता के गर्भ में थे, उसी समय अश्त्थामा ने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग परीक्षित की मां उत्तरा के गर्भ पर किया। उन्होंने बताया कि उत्तरा ने भगवान श्री कृष्ण को पुकारा। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की स्वयं रक्षा की। जब परीक्षित पैदा हुआ, उसी समय वह उठकर बैठ गया। जो भी नवजात परीक्षित को उठाकर अपनी गोद में बैठाने का प्रयास करता, वह उदास होकर बैठ जाता। लेकिन जैसे ही श्रीकृष्ण ने नवजात परीक्षित को अपनी गोद में उठाया, तो वह जोर जोर से हंसने लगा। विद्वानो ने नवजात शिशु का नाम परीक्षित रखा क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ही इस बच्चे की मां के गर्भ में रक्षा की थी। राजा बनने पर परीक्षित ने कलयुग को दंड देने का प्रसंग सुनाते हुए पंडित जोशी ने कहा कि कलयुग राजा परीक्षित की शरणागति हो गया है, इसलिए उसे क्षमा कर दीजिए। कलयुग ने अपने रहने का स्थान को मांगा तो राजा ने चार स्थान दिए। पहला स्थान जुआ क्रीड़ा, दूसरा शराब खाना, तीसरा वैश्य स्थल दिए। तीनो स्थानो के बारे में सुनकर कलयुग ने राजा परीक्षित से कोई अच्छा स्थान प्रदान करने को कहा। इस पर राजा द्वारा भूल से उनके मुख से चौथे स्थान का नाम सोना निकल गया। कुछ समय पश्चात राजा ने अपने पूर्वजो के मुकुटो को देखना चाहा तो एक एक मुकंट बहुत सुन्दर था जिसको धर्मराज युधिष्ठिर ने छिपाकर रखा था। वह मुकूट जरासंध का था जिसको भीम छीन कर लाया था। राजा ने जैसे ही उस सोने के मुकुट को पहना, कलयुग उसकी बुद्वि पर सवार हो गया। राजा जंगल में शिकार को खेलते हुए जंगल में स्थित शमीक ऋषि के आश्रम पहुंचा और अपना स्वागत करवाने को कहा। ऋषि शमीक ध्यान में थे। राजा की बुद्वि बिगड़ गई और उसने एक मरे सांप को ऋषि के गले में डाल दिया। ऋषि के पुत्र को जैसे ही इस बारे में पता चला उसने तुरंत राजा को श्राप दे दिया कि सर्पो का पूर्वज तदाक सर्प तुम्हे सातवें दिन मार डालेगा। ध्यान भंग होने के बाद वह राजा को घर जाकर मुकुट उतारने के बाद पश्चाताप की अग्नि को महसूस करते हुए रोने लगा। उन्होंने कहा कि पाप एक व्यक्ति के जीवन को सही मार्ग से गलत मार्ग की ओर मोड़ देता है। उन्होंने कहा कि आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति को अच्छे व पुण्य के कार्य करने चाहिए। पंडित गौरव जोशी ने वराह अवतार के बारे में बताते हुए कहा की हिरण्याक्ष एक दिन घूमते हुए वरुण की नगरी में जा पहुंचा। पाताल लोक में जाकर हिरण्याक्ष ने वरुण देव को युद्ध के लिए ललकारा। वरुण देव बोले कि ‘अब मुझमें लड़ने का चाव नहीं रहा है तुम जैसे बलशाली वीर से लड़ने के योग्य अब मैं नहीं हूं तुम्हें विष्णु जी से युद्ध करना चाहिए।’ तब देवतओं ने ब्रह्माजी और विष्णुजी से हिरण्याक्ष से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए नासिका से वराह नारायण को जन्म दिया। इस तरह हरि के वराह अवतार का जन्म हुआ।